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दशरथ जी की बंजर आँखें - Ravi Goswami

दशरथ जी की बंजर आँखें
कैकेई की विषधर आँखें

राम गए वन बनने भगवन
कौशल्या की पत्थर आँखें

भाई लखन सा कोइ न दूजा
चलने को हैं तत्पर आँखें

आग लगी है सब आँखों में
माँ सीता हैं पुष्कर आँखें

उर्मिल को कोई क्या लिक्खे
तन्हाई का अम्बर आँखें

काट गई हैं कर्म की रेखा
इक दासी की खंजर आँखें

छोड़ नगर को जाते रघुवर
सब लोगों की झर-झर आँखें

- Ravi Goswami

Life Shayari

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