"आख़िरी मोहब्बत"
शायद तुम मेरी आख़िरी मोहब्बत हो
शायद तुम्हारे बाद किसी और का ग़म अपने सीने से मैं न लगा सकूँ
शायद इस ज़िन्दगी में अपना साथ जो लिखा था यहीं तक था
शायद तुम्हारे बालों में अब फिर से कोई गुलाब मैं न सजा सकूँ
मगर, मेरी हमराह मेरी हमदम सितारों के पार जो जहान है
उसी जहान अब मुझसे मिलना तुम
जो किए थे हमने वो सारे अहद-ए-वफ़ा को तुम याद रखना
जो लिखे थे मैंने तुम्हारे लिए कभी
उन सारे गीतों को तुम अपने होंठों से सजाए रखना
मैं तुमको लेने आऊँगा ठीक उसी वक़्त में जब सूरज खूँ की कबाऍं ओढ़े दरिया में नहाता है
जब परिंदों की कतारें अपने शहर को लौट जाती है
और जब चाँदनी सितारों के पैरहन से दुल्हन की तरह सजाई जाती है
उस वक़्त तुम अपने छत पर आना और आँखें मूँद लेना
मैं वक़्त के ढ़ेर में से इक लम्हा बनकर तुम्हारे ख़्वाब में आऊँगा
और तुमको अपने पहलू में क़ैद करके
सितारों पार अपने घर ले जाऊँगा
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