यूँ मज़हबों में बँट के न संसार बाँटिए - SALIM RAZA REWA

यूँ मज़हबों में बँट के न संसार बाँटिए
कुछ बाँटना है आपको तो प्यार बाँटिए

 
नदियाँ बहे न ख़ून की आँगन में फिर कभी

अपने ही घर में तीर न तलवार बाँटिए
हर धर्म के गुलों से महकता है ये चमन

ख़ंजर चला के आप न गुलज़ार बाँटिए
रहने भी दीजे ग़ुंचा-ओ-गुल को इसी तरह

गुलशन हरा भरा है न श्रृंगार बाँटिए
 

जब भी मिलें किसी से बड़े प्यार से मिलें
छोटी सी ज़िन्दगी में न तकरार बाँटिए

- SALIM RAZA REWA
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