तुम्हारे पास जब शाना नहीं था
मेरी सुननी थी समझाना नहीं था
ये कैसी ज़िन्दगी है ज़िन्दगी सुन
हमें तो इस तरफ़ आना नहीं था
मैं सोया पत्थरों पे बाम धरकर
कोई अपना कोई शाना नहीं था
सभी के दिल में शहनाई बजी है
तुझे ऐ दोस्त मुस्काना नहीं था
तुझे कैसे पता हैं दर्द मेरे
तुझे तो यार भी माना नहीं था
बहुत आज़ाद था मैं कल की शब को
मेरे रोने पे जुर्माना नहीं था
मैं कश्ती ख़ुद डुबोना चाहता हूँ
मुझे उस पार भी जाना नहीं था
गई शब बाग़ में कोई न बोला
परिंदों ने भी पहचाना नहीं था
As you were reading Shayari by SWAPNIL YADAV 'NIL'
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