मुफ़्त जो बन सके मुझे बेचें - Adnan Ali SHAGAF

मुफ़्त जो बन सके मुझे बेचें
आप भी अपने मशवरे बेचें

डिग्रियाँ बेचना ही काफ़ी नहीं
अपने हिस्सों के तजरबे बेचें

वरना ये ख़ून भी तो पानी है
आओ कुछ क़तरे ख़ून के बेचें

हमने वादा किया है ख़ुशियों का
क्यों ग़मों को हम आपसे बेचें

सुनो ऐ घोड़े बेचने वाली
हम भला किसको रतजगे बेचें

सुनते हैं वो बहुत पटाखा है
उसके घर पर चलो दिए बेचें

हम नहीं ज़ेवरात के शौक़ीन
हम जवानों को असलहे बेचें

दाम मुँह माँगी ले लें और हमें
अपने होंठों के ज़ाएक़े बेचें

- Adnan Ali SHAGAF
0 Likes

More by Adnan Ali SHAGAF

As you were reading Shayari by Adnan Ali SHAGAF

Similar Writers

our suggestion based on Adnan Ali SHAGAF

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari