हमको ख़ुदा की ज़ात पे जितना यक़ीन है
ऐ शख़्स तेरे प्यार पे उतना यक़ीन है
करता है आज़माइशें दिन में हज़ार बार
ऊपर से पूछता है कि कितना यक़ीन है
हमको तुम्हारे हिज्र के सारे सफ़र क़ुबूल
पंछी का हर दरख़्त पे रुकना यक़ीन है
जो कुछ है काएनात में वो सब तुम्हारे नाम
मुझको तुम्हारी बात पे इतना यक़ीन है
हासिल है मेरी ज़िंदगी का "शम्स" बस यही
उससे जुदाई ऐब है मिलना यक़ीन है
As you were reading Shayari by Shamsul Hasan ShamS
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