रब्त है मुझ से तिरा तो रब्त का उनवान बोल
या मुझे अंजान कह दे या फिर अपनी जान बोल
एक ही चेहरा नज़र में और लबों पे इक ही नाम
और क्या होती है सच्चे इश्क़ की पहचान बोल ?
मै अँगूठी बेच कर ले आया तेरी बालियाँ
सूने-सूने देखता कब तक मै तेरे कान बोल
ये मुलायम हाथ मेरे काम कब आएँगे जाँ?
कब बिछेगा इन से मेरे घर में दस्तर-ख़्वान बोल ?
कब मिलेगी सुब्ह तुझ से चाय की प्याली मुझे?
कब तेरे हाथों का खाऊँगा कोई पकवान बोल ?
कब तिरे वालिद मिरे वालिद से मिलने आएँगे?
कब तिरी अम्मी को बोलूँगा मैं अम्मी जान बोल?
पूछते है सब तिरा मैं कौन हूँ क्या नाम है
बोलने का वक़्त है अब, बोल मेरी जान बोल
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