ऐहतियातन कर दिए तस्वीर के टुकड़े, मगर
कह रही थी दिल में मेरे तुम रहोगे उम्र भर
चार दिन की ज़िंदगी है, तीन दिन तो कट गए
एक दिन के वास्ते अब क्या करें कुछ माँगकर
चाँद का भी अपना दुख है, जो कभी दिखता नहीं
बीच तारों के भी वो रहता है तन्हा रातभर
बस दिखावे की है हिम्मत, सच तो ये है मेरे दोस्त
तेरी आँखें कह रही हैं, तुझको भी लगता है डर
हौसला जो मर चुका था फिर से ज़िंदा हो गया
जब चराग़ इक लड़ता देखा तीरगी से ता-सहर
कौन कहता है जहाँ में जीतकर मिलता है सब
हमने उनको पा लिया है अपना सब कुछ हारकर
एक आदत ने उन्हें मजबूर इतना कर दिया
सब परिंदे आ गए हैं फिर क़फ़स में लौटकर
तेरी ख़ामोशी समझ लूँ, इतना मैं दाना नहीं
इक इशारा मेरी जानिब कर, मोहब्बत है अगर
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