कोई मौसम कोई चेहरा मुझे फिर याद आया है
कभी दिल से तिरे होकर कोई बरबाद आया है
किया है याद जब श्री राम को हमने मुसीबत में
कही तब ज़िंदगी का कुछ हमें भी स्वाद आया है
जिसे कहता ज़माना है यहाँ पर क़ैद ही अक्सर
उन्हीं आँखों के जादू से कोई आज़ाद आया है
ज़रा देखो वही सूरत वही लहजा वही रौनक़
मगर मिलने मुझे वो कितने बरसों बाद आया है
नहीं आता था जिसका फ़ोन भी अब तक उसी ज़ालिम
का मेरी हार पे कैसे मुबारकबाद आया है
तिरी इन खाहिशों के आगे ये बाज़ारे है ही क्या
चलो अब देखते हैं अब अमीनाबाद आया है
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