अश्क पलकों से बहाते जाइए
राज़ आँखों से बताते जाइए
ख़ुद को आईना बनाते जाइए
हम को हम से ही मिलाते जाइए
दोस्ती मुमकिन न हो तो क्या हुआ
दुश्मनी जम कर निभाते जाइए
रात होगी जिस से रौशन शहर की
उन चराग़ों को बुझाते जाइए
हाल-ए-दिल कहना लगे दुश्वार तो
शेर के ज़रिए सुनाते जाइए
इश्क़ पाकीज़ा मिलेगा आप को
शाइरों को आज़माते जाइए
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