इक वो हमसे जो बिछड़ कर कभी तन्हा न लगे
और इक हम के कभी फिर से शगुफ़्ता न लगे
आह उस शब की सहर जिसमें बिछड़ना था हमें
हम तिरे साथ कभी पहले यूँ तन्हा न लगे
सिर्फ़ उसे बे-वफ़ा लिख दूँ ये ख़याल आया था
फिर ये सोचा कहीं इस दिल को ही अच्छा न लगे
इतना ख़ुश भी नहीं ये दिल के भुला दे तुझको
पर यूँ ग़म में भी नहीं है कि दोबारा न लगे
उफ़ के इस नूर भरे चेहरे पे काजल तौबा
चाँद उतर आए तो भी आप के जैसा न लगे
बे-वफ़ाई की भी तरतीब सिखा दी उसने
दिल भी इस तरह से तोड़ा कि शिकस्ता न लगे
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