तेरे ही जैसे यार तो, इंसान मैं भी हूँ
इस ज़िन्दगी के ग़म से, परेशान मैं भी हूँ
रिश्ते जो पहले ख़ून के थे ग़ैर हो गए
अपने ही घर में आज तो, मेहमान मैं भी हूँ
तन्हाइयों का रोना न रोया करो ऐ दश्त
दुनिया के भीड़ भाड़ में, वीरान मैं भी हूँ
कहता था उम्र भर कभी बदलेंगे हम नहीं
वो आज क्यों बदल गया, हैरान मैं भी हूँ
नज़रे करम हो मुझपे भी फ़ुर्सत मिले अगर
तेरी हसीन आँखों पे क़ुर्बान मैं भी हूँ
ऐसा नहीं के तुम ही, जले हो जुदाई में
तुझसे “मलक” बिछड़ के तो, बे-जान मैं भी हूँ
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