चोट खाई है मगर टूटा नहीं हूँ
ज़िंदगी पत्थर हूँ मैं शीशा नहीं हूँ
जैसा भी हूँ पर तेरे जैसा नहीं हूँ
हाँ बुरा हूँ मैं मगर झूठा नहीं हूँ
आपकी यादें बसर करती हैं मुझमें
अब मैं तन्हाई में भी तन्हा नहीं हूँ
जब से उन आँखों में, मैं रहने लगा हूँ
फिर किसी भी जिस्म पे आया नहीं हूँ
ज़िंदगी के रास्तों पर चल रहा हूँ
थक गया हूँ मैं मगर हारा नहीं हूँ
हाथ को अपने मिरी आँखों पे रख दो
जान इक मुद्दत से मैं सोया नहीं हूँ
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