जैसे हर शय हुई तब्दील बुरी लगती है
तू नहीं साथ तो ये झील बुरी लगती है
जब भी दीवार पे पड़ती हैं निगाहें मेरी
तेरी तस्वीर के बिन कील बुरी लगती है
चाँद में दाग़ हैं बे-दाग़ है तेरा चेहरा
चाँद से भी तेरी तमसील बुरी लगती है
प्यार करते हों कोई और कोई जलता रहे
वस्ल³ की रात में क़िंदील बुरी लगती है
शेर का हुस्न बढ़ा देती है आज़ाद रदीफ़
क़ाफ़िया में जो हो तहलील बुरी लगती है
जो भी कहना है अदब और सलीक़े से कहो
बात कोई करे अश्लील बुरी लगती है
मुख़्तसर⁶बात जब आ जाये समझ हमको अनीस
बे-ज़रूरत भी तो तफ़्सील बुरी लगती है
As you were reading Shayari by Anis shah anis
our suggestion based on Anis shah anis
As you were reading undefined Shayari