जैसे हर शय हुई तब्दील बुरी लगती है - Anis shah anis

जैसे हर शय हुई तब्दील बुरी लगती है
तू नहीं साथ तो ये झील बुरी लगती है

जब भी दीवार पे पड़ती हैं निगाहें मेरी
तेरी तस्वीर के बिन कील बुरी लगती है

चाँद में दाग़ हैं बे-दाग़ है तेरा चेहरा
चाँद से भी तेरी तमसील बुरी लगती है

प्यार करते हों कोई और कोई जलता रहे
वस्ल³ की रात में क़िंदील बुरी लगती है

शेर का हुस्न बढ़ा देती है आज़ाद रदीफ़
क़ाफ़िया  में जो हो तहलील  बुरी लगती है

जो भी कहना है अदब और सलीक़े से कहो
बात कोई करे अश्लील बुरी लगती है

मुख़्तसर⁶बात जब आ जाये समझ हमको अनीस
बे-ज़रूरत भी तो तफ़्सील बुरी लगती है

- Anis shah anis
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