भर दिया था ख़ुद को पहले घाव से - "Dharam" Barot

भर दिया था ख़ुद को पहले घाव से
डर नहीं रहता था फिर बदलाव से

दोस्त पर कस सकते हो कोई भी तंज़
तंज़ कसना वो भी अच्छे भाव से

बैठ कर दो बातें करनी पड़ती है
हल नहीं आता कोई टकराव से

रोकता था सबको बूढ़ा कहके ये
चोट खाई है कई पथराव से

राजनेता काम करते है ये पर
कुछ नहीं मिलता 'धरम' अलगाव से

- "Dharam" Barot
1 Like

More by "Dharam" Barot

As you were reading Shayari by "Dharam" Barot

Similar Writers

our suggestion based on "Dharam" Barot

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari