हारे हुओं को हौसला देना भी तो इक फ़र्ज़ है
जीते हुओं पर हारने वालों का रहता कर्ज़ है
देकर अदालत में चुनौती झूठी बच जाते हो तुम
उसकी अदालत में मगर हर इक शिकायत दर्ज़ है
जब बात ख़ुद पर आती ख़ुद के ही नियम हम मानते
यानी की हम इंसान का ख़ुदगर्ज होना मर्ज़ है
हाँ वक़्त लग जाता है घर को घर बनाने में धरम
रख पाना घर को घर ये उससे भी बड़ा इक फ़र्ज़ है
As you were reading Shayari by "Dharam" Barot
our suggestion based on "Dharam" Barot
As you were reading undefined Shayari