जो मुहब्बत में कभी पकड़ा गया है
वो सलीक़े से बहुत कूटा गया है
दोस्तों से हूँ ख़फ़ा पर ख़ुश भी हूँ मैं
नाम उसके साथ में जोड़ा गया है
मैं दयार-ए-इश्क़ में उलझी पड़ी थी
वो सितमगर तोड़ कर सुलझा गया है
मैसजों में प्यार का पैग़ाम लिखकर
नौकरी की सोच कर काटा गया है
वो जहाँ के वास्ते कुछ भी रही हो
बाप के हाथों से तो कंधा गया है
मैं ख़फ़ा थी और उसने बाँह खोली
फिर मुहब्बत में मुझे उलझा गया है
वो मकीं कुछ रोज़ से लौटा नहीं है
लग रहा है दिल से वो उकता गया है
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