चराग़ो के सफ़र को अब मुझे आसान करना है
हवा के ज़ोर को हर हाल में हलकान करना है
उठे जब एक चिंगारी तो फिर शो’ला बताता है
कहीं पे फिर किसी घर को उसे वीरान करना है
बुलंदी पर पहुंचना हो, तो झुक कर चलना पड़ता है
इसी ख़ातिर अना को अब मुझे क़ुर्बान करना है
जवानी तुम पे लाने में बुढ़ापा मुझपे आया है
मेरे बच्चों यहां पे अब तुम्हें एहसान करना है
है जिससे डरते रहते सब लगा कर अब गले उसको
मुझे फिर ज़िंदगी को एक दिन हैरान करना है
तुम्हारा हिज्र काटूं या क़दम आगे बढ़ा लूं मैं
करूं जो फैसला लेकिन इसी दौरान करना है
अभी तो शे’र थोड़े हैं तेरी झोली में ऐ ख़ालिद
मगर इक दिन इसे भी मीर का दीवान करना है
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