मिरा अब आसमाँ से रिश्ता टूटा है - Lalit Mohan Joshi

मिरा अब आसमाँ से रिश्ता टूटा है
मिरा उस चाँद से नाता भी छूटा है

करूँ फ़रियाद किससे टूटे दिल की अब
यहाँ गुल आख़िरी हाथों से छूटा है

था रक्खा थामें जिसकी डोर को बरसों
चले जाने से ख़ुद से रिश्ता टूटा है

ये तन्हाई नहीं है बेवजह मेरी
मुझे दुनिया ने यारो ख़ूब लूटा है

चला जाऊँ कही ग़म हिस्से आया है
यहाँ तो जैसे नाता सुख से छूटा है

किसी को क्यों कहूँ अब मैं बुरा यारो
यहाँ तो दर्द अल्मोड़ा ही फूटा है

ये कैसा दौर आ रक्खा है देखो अब
'ललित' हर शख़्स कितना लगता झूटा है

- Lalit Mohan Joshi
3 Likes

More by Lalit Mohan Joshi

As you were reading Shayari by Lalit Mohan Joshi

Similar Writers

our suggestion based on Lalit Mohan Joshi

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari