यक़ीनन दर्द की कोई जवानी थी
मगर उम्मीद जीने की दिखानी थी
गली में वो ख़मोशी से गुज़रता है
ये आदत यार उसकी तो पुरानी थी
उदासी छा गई उसकी तो लहरों में
यही इक उस समंदर की कहानी थी
ग़ज़ल मेरी पढ़ो तुम दिल लगाकर सब
लिखी ग़ज़लें तो दुनिया को ज़बानी थी
अँधेरा रौशनी से हारता हर दिन
तो क्यूँ डरकर यूँ उसने हार मानी थी
कहीं इक शाम होने को चली ग़म की
वो तो बस इक बला-ए-ना-गहानी थी
ज़मीं पर मछलियाँ चलने लगी थीं फिर
ख़बर ये सब सिनेमा घर चलानी थी
मुसाफ़िर हम समंदर के हुए यारो
ग़ज़ल लहरों पे हमको यार ख़्वानी थी
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