चाँद की अपनी यहाँ पे चाँदनी है
दोस्तो क्यों मुझमें तन्हाई बसी है
तालियाँ भी यार उसको मिल गईं अब
बात बिन सर पैर की जिसने कही है
आपके रस्ते उजाले है बहुत पर
क्यों न मेरी ज़िंदगी में रौशनी है
भूलने को भूल जाऊँ मैं मगर फिर
वो ज़मीं की यार हर शय में बसी है
काम आधे रह गए हैं मेरे सारे
याद रखना उम्र मेरी ढल रही है
रोज़ रोना किसलिए करते है हम सब
सच यही है मौत आनी इक घड़ी है
रात को तकते रहा मैं जागने तक
रात आई दिन हुआ ये ज़िंदगी है
आप तो रोते नहीं कहते हैं सब लोग
क्या कहूँ अब आँख पत्थर हो गई है
ख़ामुशी हद से ज़ियादा हो गई दोस्त
सिलसिला अब इक नया होना कोई है
इस बुरी दुनिया की नज़रों से यहाँ फिर
बेटियों की रूह यानी अब डरी है
Read Full