न क़िस्मत ने न ही बद-क़िस्मती ने तोड़ डाला
कहें क्या हम हमें इस मुफ़्लिसी ने तोड़ डाला
परेशाँ हो गए हैं रोज़ की रस्सा-कशी से
हमें ये रोज़ की रस्सा-कशी ने तोड़ डाला
तरस जिस उम्र में खाती है सब पे ज़िन्दगी ये
हमें उस उम्र में इस ज़िन्दगी ने तोड़ डाला
पचा नाकामियाँ तो ली हैं जैसे-तैसे लेकिन
हुई हासिल है जो शर्मिंदगी ने तोड़ डाला
बड़ी भारी पड़ी दिल पे हमारे आशिक़ी ये
हमारे दिल को हम को आशिक़ी ने तोड़ डाला
हमेशा से यही इक सिलसिला जारी रहा है
किया जिसपे यक़ीं हम ने उसी ने तोड़ डाला
ज़बान-ए-उर्दू तो आयी समझ अच्छे से हम को
मगर दुश्वार अरबी-फ़ारसी ने तोड़ डाला
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