हुर्रियत पर जो ज़ंजीर लिख देता है
यानी वो मेरी तक़दीर लिख देता है
हर दफ़ा चाहता हूँ कि जंग अब न हो
हर दफ़ा ही वो शमशीर लिख देता है
ये मिरा दिल है मुल्क-ए-मुख़ालिफ़ नहीं
जो अदावत पे कश्मीर लिख देता है
जब भी बीमार होता हूँ दिलबर मिरा
दफ़अतन कोई तदबीर लिख देता है
याद-ए-रफ़्ता तिरी धुँधली जब होती है
दिल मुसव्विर है तस्वीर लिख देता है
जानिब-ए-मंज़िल-ए-इश्क़ से मत गुज़र
पत्थरों पर ये रह-गीर लिख देता है
हक़ जताता है मुझ पर मिरे नाम जब
थोड़ी सी दिल की जागीर लिख देता है
आशिक़ उस का सुख़न-वर है कोई मिलन
जो मोहब्बत पे तहरीर लिख देता है
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