ज़ियादा से ज़ियादा अपनी ज़ीस्त देंगे फूल
जो पुर-कशिश रहेंगे क़दमों में बिछेंगे फूल
ये शाज़ ख़ूबसूरती पे मत ग़ुरूर कर
ज़ियादा देर तक नहीं खिले रहेंगे फूल
ये सोच कर कभी तिरा बदन नहीं छुआ
जो तोड़ लेंगे हम कली तो क्या कहेंगे फूल
जो प्यार करने वाले देते एक-दूजे को
जो ईश्वर को चढ़ते हम तुम्हें वो देंगे फूल
कँवल-सा अंग-अंग ख़ुशबू रात-रानी सी
तू बाग़ में क़दम तो रख ये लड़ मरेंगे फूल
तुम आओ तो सही तुम्हारे इंतिज़ार में
दिनों की बात क्या तमाम शब खिलेंगे फूल
मैं सारा बाग़ दे रहा हूँ तोहफ़े में तुम्हें
अगर नहीं रहा मैं साथ तो रहेंगे फूल
रुबाइयों में शम्स नज़्मों में रहोगी चाँद
तुम्हें तो हम हमारी ग़ज़लों में लिखेंगे फूल
फ़ज़ा-पसंद हम फ़ज़ा-परस्त भी हमीं
मिलेंगे हम वहाँ 'मिलन' जहाँ बिकेंगे फूल
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