एक पिघलते चाँद की कतली, एक गुज़रती रात - Saurabh Mehta 'Alfaaz'

एक पिघलते चाँद की कतली, एक गुज़रती रात
धू-धू जलती सूखी यादें, टिम-टिम करती रात

हर दिन आँखों के सिरहाने, लाशों का अंबार
एक सुबह के ख़्वाब की ख़ातिर हर दिन मरती रात

माज़ी के बीहड़ जंगल में , खोजे बीता दौर
लम्हों के सूखे पत्तों सी, रोज़ बिखरती रात

याद नहीं कब आँख लगी, कब जागे सोते नैन
याद नहीं कब आई सुबहा , और बिसरती रात

लम्बी एक कहानी उसकी, मुट्ठीभर 'अल्फाज़'
वक़्त गुज़रता ख़ामोशी में, बातें करती रात

- Saurabh Mehta 'Alfaaz'
10 Likes

More by Saurabh Mehta 'Alfaaz'

As you were reading Shayari by Saurabh Mehta 'Alfaaz'

Similar Writers

our suggestion based on Saurabh Mehta 'Alfaaz'

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari