बार ही बार मेरे दिल ने जसारत की है
बाद तेरे भी जो तुझसे ही मोहब्बत की है
कोशिशें करता रहा तुझको भुलाने की मगर
इसी उलझन में तेरी और भी चाहत की है
मुझको आदम ने सिखाएं हैं अदब हव्वा के
इस वजह से तेरी नादानी की इज़्ज़त की है
चलो दुनिया तो किसी तौर से दुनिया थी मगर
कुछ ख़ुदा ने भी मेरे साथ शरारत की है
जिन फ़रिश्तों को बिठाया था सदा काँधो पर
उन फ़रिश्तों ने सर ए हश्र शिकायत की है
हर किसी को है मेरे हाल से शिकवा ज़ुहरी
किस क़दर मेरी जवानी की फ़ज़ीहत की है
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