लौट के फिर से ज़िन्दगी आयी
जबसे हमको सुख़नवरी आयी
हम किवाड़ेॆ दरीचेॆ बंद करे
और दरारों से रौशनी आयी
बेच डाले थे ख़्वाब सारे तब
दाम में एक नौकरी आयी
काँच के टुकड़े बे-हिसाब हुए
यूँही हममे न बे-दिली आयी
भूल जाते है सब वो पहला घर
जिनसे साँसें व ज़िन्दगी आयी
हर मुरादों पे उसने देरी की
फिर भी हम में न काफ़िरी आयी
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