जो मिलता है उसको अपना मान के कोई हल देता है,
लेकिन वो पागल बस अपनी मुश्किल पर ही बल देता है
पेड़ तुझे कल देखा मैंने ,तूने बाग़ से छाँव चुराई ,
करूँ शिकायत तेरी रब से या तू मुझको फल देता है?
ये मुश्किल रस्ता है और इसपर अक्सर मैंने देखा है
सोचने वाला सोचता है और चलने वाला चल देता है
डर भी वो ही डर होता है जो डर आँखों तक आ जाए,
ग़म भी वो ही ग़म होता है जो माथे पर सल देता है
लड़ता है तो फिर घण्टों तक मुझसे लड़ता है यार मेरा,
लेकिन यारी साबित करने को बस कुछ ही पल देता है..
आख़िर क्या चलता है दुनिया लिखने वाले के भी मन में ?
जो भी थोड़ा टिकता है उसका किरदार बदल देता है
दिल की ख़ातिरदारी में जो कुछ भी कर लो कम है 'दर्पन' ,
जब भी ख़ुश होता है ये तो मुझको एक ग़ज़ल देता है
'दर्पन'
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