चाहे कैसा भी मौसम हो सब्ज़ नहीं होता हूँ मैं

  - Abhas Nalwaya Darpan

चाहे कैसा भी मौसम हो सब्ज़ नहीं होता हूँ मैं
इस जंगल में अपने जैसा इकलौता पौधा हूँ मैं


पहली दो से तीन दफ़ा ये दुनिया मुझपर खुलती है ,
दुनिया पर तो लगभग चौथी दस्तक पे खुलता हूँ मैं


बस दुःख में शामिल नइ होता ग़मगुसार भी होता हूँ,
रोता हूँ तो रोते रोते हिम्मत भी देता हूँ मैं ..


तुमको जितना लगता है मैं उतना भी मसरूफ़ नहीं,
तुमने मुझको याद किया तो ये देखो आया हूँ मैं..


एक मुहब्बत का अफ़साना मंज़िल को ना छू पाया,
एक सफ़र पे 'हम' निकले थे पर वापस लौटा हूँ 'मैं' ..



लाता हूँ मैं उसको आवाज़ों की चार दिवारी में ,
उसकी ख़ामोशी को कान लगाकर फिर सुनता हूँ मैं


मैं अपने कुनबे की उस ख़ालिस मिट्टी का वारिस हूँ,
कूज़ागर कहता है बन और ख़ुद ही बन जाता हूँ मैं..


मैंने अपनी ज़द से बाहर का वो मंज़र देख लिया,
सालों से घर में बैठा हूँ इतना खौफ़ ज़दा हूँ मैं


'दर्पन' फूलों की ख़ातिर-दारी में सहरा मत भूलो,
तुमको बस ये याद दिलाने सहरा से आया हूँ मैं

  - Abhas Nalwaya Darpan

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