ज़िन्दगी अपनी हम गुज़ार चले
सब नशा इश्क़ का उतार चले
कोई हसरत नहीं हमें ख़ुद से
हम सभी हसरतों के पार चले
सबकी सब नफ़रतों को दिल से लगा
है हमारा ख़ुदा पुकार चले
उस गली में नहीं बचा कुछ क्यूँ
उस गली हम यूँ बार-बार चले
जो निभा सकते थे निभा दी फिर
मन में लेके वो क्यूँ गुबार चले
मिल गया दोस्त एक उसका हम
बोझ दिल का सभी उतार चले
वो मिले या नहीं मिले हमको
उसकी क़िस्मत को हम सँवार चले
दिल के टुकड़े किये हैं जिसने यार
हम तो उस पे ही जाँ निसार चले
मिलती हैं सब को मन्ज़िलें तो कभी
तीर-ए-दुश्मन भले हज़ार चले
यार आएँ न आएँ दोस्त सभी
ओर से अपनी हम गुहार चले
अब बचा कुछ नहीं ख़ला के सिवा
अब चलो हम यहाँ से यार चले
चलते हैं ज़िन्दगी लिए ऐसे
लाश लेके जो लोग चार चले
ज़िन्दगी इसलिए भी जी कुछ तो
ज़िल्लतों का भी रोज़गार चले
चाह रंग-ए-सुखन की थी लेकिन
हो के हम याँ से अश्क़-बार चले
वो सर-ए-रहगुज़र थी मिलती सो
दिल-ए-हर वो कली निहार चले
शहर पहले पहल हुए जो नाश
सबसे पहले तो शहरयार चले
जो बिगाड़ी ज़बान हमने अभी
तो ज़बान अपनी सब सुधार चले
की मदद दिल से सबकी मैंने तो
सब मिरी बार बस विचार चले
हुक़्म उसका मिला चले यूँ लोग
जैसे लम्बी कोई क़तार चले
रास आयी नहीं ये दुनिया सो
छोड़ दुनिया 'अनुज कुमार' चले
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