ज़िंदगी आँख के परदे पे उतर आई है
इसकी तस्वीर में बस ज़िल्लत-ओ-रुस्वाई है
इतने बरसों से बदलती हुई क़ुदरत देखो
सब तमाशे हैं मगर एक तमाशाई है
उम्र भर पस्त रहा और हुआ आवेज़ाँ
पर दिल-ए-ज़ार में उलफ़त की तवानाई है
फ़िक्र-ए-दुनिया में है सर अपना झुकाए बैठे
मस्त लोगों से कहाँ अपनी शनासाई है
अब ज़रा मुझ को बता झूठ बताने वाले
मेरी बातों में भला कितनी ही सच्चाई है
जब न था कोई ख़ला में मेरे फ़ाज़िल तो फिर
किस से जा कर मेरी आवाज़ ये टकराई है
तन बदन पर मेरे वहशत का ठिकाना जैसे
मेरी जागीर मेरा जिस्म ये सहराई है
मेरी दुनिया में तो चश्मों के सिवा कुछ भी नहीं
तेरी दुनिया में तो बीनाई सी बीनाई है
याद तो याद है तू भी चली आई आख़िर
कमरे में हर-सू मगर आलम-ए-तन्हाई है
कुछ तो नाज़ुक से है हालात उधर भी यारों
उसके लहजे में खनक और वो घबराई है
हाथ में पाँच नगीनों की अँगूठी देखी
मौसमों ने उसे जो प्यार से पहनाई है
मौत तो क्या ही है कुछ और हो 'सय्यद' की सज़ा
मग़्ज़-ए-सर आलम-ए-फानी का तमन्नाई है
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