सामने आ पर्दा-ए-ज़ुल्मात से बाहर निकल - Dharmesh bashar

सामने आ पर्दा-ए-ज़ुल्मात से बाहर निकल
तू अगर तू है तो मेरी ज़ात से बाहर निकल

चूर हो जाए न तेरा आइना पैकर वजूद
संग आवाज़ों की इस बरसात से बाहर निकल

काट खाएगा तिरी दीवार का साया तुझे
इन बिखरते टूटते लम्हात से बाहर निकल

धूप कब से है तिरी दहलीज़ पर बैठी हुई
दास्तान-ए-ज़िन्दगी अब रात से बाहर निकल

मेरी क़िस्मत का सितारा है तो पेशानी पे आ
कुछ न देंगी ये लकीरें हाथ से बाहर निकल

थम न जाए अब 'बशर' ये नब्ज़-ए-एहसास-ए-ख़ुदी
रहम की दीमक-ज़दा ख़ैरात से बाहर निकल

- Dharmesh bashar
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