चाहत हमें ये दिल की जताने भी दीजिए
बाक़ी फ़ुज़ूल बातें हैं जाने भी दीजिए
यादों के कारवाँ को सजाने भी दीजिए
तारीकियों में धूप उगाने भी दीजिए
दो गज ज़मीं नसीब हो अब रहने के लिए
ये कब कहा कि राज घराने भी दीजिए
अबके हुई है तारी तमन्नाओं पर थकन
कुछ ख़्वाब अब तो हमको सजाने भी दीजिए
बैठे हुए हैं वो भी इसी इंतिज़ार में
अब रोकिए न हमको मनाने भी दीजिए
मायूस हो के जाए न घर से मिरे हवा
उसको मिरे चराग़ बुझाने भी दीजिए
उनके सितम हैं कितने जफ़ाओं का क्या शुमार
हम क्या बताएँ छोड़िए जाने भी दीजिए
कब से है ये निगाह यूँ बेताब-ओ-मुंतज़िर
पर्दा जमाल का ये उठाने भी दीजिए
वो भी तो जान जाएँ कि क्या शय है ला-इलाज
चारागरों को ज़ख़्म दिखाने भी दीजिए
देखा है ज़िन्दगी का हुनर उम्र भर 'बशर'
अब मौत को भी देख लें आने भी दीजिए
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