मैं पहले ग़ज़ल से ही इक चेहरा बनाता था

  - Bhuwan Singh

मैं पहले ग़ज़ल से ही इक चेहरा बनाता था
मुझको भी ये लगता था मैं अच्छा बनाता था

मुझको तो मोहब्बत ने गुमराह किया है दोस्त
मैं मंज़िलों तक वरना ख़ुद रस्ता बनाता था

दिल की सुना करता था मैं पहले बहुत पहले
इस दिल ने जो भी चाहा जो सोचा बनाता था

मैं सोचता हूॅं हमको रब ने यहाँ भेजा क्यूॅं
क्या चोट ही खाने को बस लड़का बनाता था

आ जाता था कोई भी मैं इसलिए डर में था
सो घर से भी पहले मैं दरवाज़ा बनाता था

मेरी इसी आदत ने बर्बाद किया मुझको
मैं गै़रों से मिलता था और अपना बनाता था

औरों को मयस्सर था दीदार-ए-बदन उसका
लेकिन मेरे ही आगे वो पर्दा बनाता था

  - Bhuwan Singh

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