पूछे कोई तो कहना अज़िय्यत में मर गए
हम बद-नसीब थे जो मोहब्बत में मर गए
काँटों में आदतन थे मगर साँस भरते थे
हम ऐसे फूल थे जो हिफ़ाज़त में मर गए
किसकी बुरी नज़र लगी मेरे गवाहों को
कैसे मेरे रक़ीब अदालत में मर गए
उसकी वजह से टुकड़ों में ये दिल बिखर गया
हम अपने दिल के दौर-ए-मरम्मत में मर गए
फिर तुझको भूल जाने का सोचेंगे दोस्त हम
गर तुझको याद करने की आदत में मर गए
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