किसी ने कर दिया है आज इतना दूर ग़ज़लों से
बता कैसे मिरे चेहरे में लाऊँ नूर ग़ज़लों से
हुनर बख़्शा हो कितना भी यही समझा ज़माने ने
भला क्या पेट भरते हैं कभी मज़दूर ग़ज़लों से
बहुत कमज़ोर रक्खी थी किसी ने नींव ख़्वाबों की
इमारत अब नहीं बनती है चकनाचूर ग़ज़लों से
कहाँ मुमकिन था मिसरों से सुख़न-वर दिल बना देगा
मगर अब देख बदला है यही दस्तूर ग़ज़लों से
यहाँ तक आ गए हो तो ज़रा ये शोर भी सुन लो
सजी है आज भी महफ़िल सनम मशहूर ग़ज़लों से
तुझे गर साथ रखना है इन्हें लेकर चला जा तू
मकाॅं खाली कराना है मुझे मग़रूर ग़ज़लों से
मिरी इस ज़िंदगी में इक तमाशा रोज़ होता है
मगर लगता नहीं राही कभी मजबूर ग़ज़लों से
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