हमारे ग़म पे चमन की फ़ज़ा ने तंज़ किया
हँसी उड़ाई गुलों ने सबा ने तंज़ किया
जब आया वक़्त किया शर्म-शार सजदों ने
उठाया हाथ तो मुझ पर दुआ ने तंज़ किया
अजब गुरूर-पसंदी है इस की फ़ितरत में
जहाँ चराग़ जलाया हवा ने तंज़ किया
ख़लिश जो दिल में थी लाया न अपने लब पे मगर
बना के उसने हज़ारों बहाने तंज़ किया
मरज़ अजीब था अपना अजब मसीहा थे
दवा ने मुझ पे दवा पर शिफ़ा ने तंज़ किया
हैं ज़र्रे-ज़र्रे में रौशन हज़ार आईने
हर आइने पे तिरे नक़्श-ए-पा ने तंज़ किया
मिरी निगाह सबा नम थी वक़्त-ए-रुख़सत तो
हथेली पे निखर आई हिना ने तंज़ किया
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