मेहमाँ है चंद लम्हों की सूरज की ताब-ओ-तब
इस रौशनी में ढूँढ के रख लो चराग़-ए-शब
तूफ़ाँ है तेज़ थामे रहो दोस्तों के हाथ
क्या जाने छूट जाए यहाँ कौन किस से कब
साग़र छुए लबों को ये मुमकिन कहाँ कि आज
मीना व जाम तक नहीं मिलते हैं लब-ब-लब
जब उस ने एक बार नहीं कह दिया तो फिर
आगे कोई दलील न पीछे कोई सबब
बरगद के उस दरख़्त को तहक़ीर से न देख
दरवेश कोई महव-ए-दुआ है अदब-अदब
सारे जहाँ को शाफ़ी-ओ-काफ़ी है तेरी ज़ात
और मैं फ़रोग़-ए-दर्द से बेचैन हाय रब
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