मेहमाँ है चंद लम्हों की सूरज की ताब-ओ-तब

  - divya 'sabaa'

मेहमाँ है चंद लम्हों की सूरज की ताब-ओ-तब
इस रौशनी में ढूँढ के रख लो चराग़-ए-शब

तूफ़ाँ है तेज़ थामे रहो दोस्तों के हाथ
क्या जाने छूट जाए यहाँ कौन किस से कब

साग़र छुए लबों को ये मुमकिन कहाँ कि आज
मीना व जाम तक नहीं मिलते हैं लब-ब-लब

जब उस ने एक बार नहीं कह दिया तो फिर
आगे कोई दलील न पीछे कोई सबब

बरगद के उस दरख़्त को तहक़ीर से न देख
दरवेश कोई महव-ए-दुआ है अदब-अदब

सारे जहाँ को शाफ़ी-ओ-काफ़ी है तेरी ज़ात
और मैं फ़रोग़-ए-दर्द से बेचैन हाय रब

  - divya 'sabaa'

More by divya 'sabaa'

As you were reading Shayari by divya 'sabaa'

Similar Writers

our suggestion based on divya 'sabaa'

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari