ज़हन में बात जो भी थी बता देते तो अच्छा था
जो कुछ कहना सुनाना था सुना देते तो अच्छा था
सभी शिकवे गिले तेरे ज़माने से हुए मालूम
शिक़ायत मुझसे थी मुझको बता देते तो अच्छा था
मुहब्बत तुमने दफ़ना कर हयात-ए-हिज्र अपनायी
तो अब क्यूँ सोचते हो तुम जता देते तो अच्छा था
शब-ए-तन्हा में गुज़री उम्र पर आँसू बहाना क्या
कलेजा चीरकर अपना दिखा देते तो अच्छा था
किये वादे कई तुमने सफ़र की इब्तिदा में पर
वो इक वादा मुहब्बत का निभा देते तो अच्छा था
मलामत कर रहे हो चीखते हो अब गुनाहों पर
गुनाह को देखते ही ग़ुल मचा देते तो अच्छा था
सभी मुजरिम नहीं थे क़ैद थे जो क़ैदखानों में
जो मुज़रिम थे उन्हीं को तुम सज़ा देते तो अच्छा था
बहुत पछता रहे हैं सोचते हैं नस्लें बच जातीं
अगर सच से उन्हें वाकिफ़ करा देते तो अच्छा था
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