जो बे-वफ़ा को बे-वफ़ा है मानता
क़ीमत वफ़ा की बस वही है जानता
वो यार है मेरा मुझे जो आज-कल
पहचान करके भी नहीं पहचानता
तुम बोल भी सकते नहीं आगे मिरे
तुमको अगर अपना नहीं मैं मानता
मैं रात भर रोता रहा जिसके लिए
क्या वो नहीं जज़्बात मेरे जानता
मैंने दिखावे की नहीं जी ज़िंदगी
वर्ना सड़क की ख़ाक मैं भी छानता
सच बोलने वाला कहीं मिलता नहीं
इस बात को हर आदमी है जानता
अब झूठ को ही पूजते हैं लोग सब
मैं भी इसे पूजूँ नहीं मन मानता
मैं जीत सकता था मगर जीता नहीं
किसको गिरा कर जीतने की ठानता
मुझसे बड़ा पापी नहीं होगा यहाँ
मैं तीर भाई पर अगर हूँ तानता
अब आज से ये ज़िंदगी तेरी हुई
'सागर' तुझे अपना सगा है मानता
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