इक वस्फ़ तो सब में बराबर होता है
ख़ुद के बिछड़ जाने का इक डर होता है
जब तोड़ देती है ये ख़ामोशी मुझे
हर काम तब हाथों से बद्तर होता है
परदेस है दौलत कमाने के लिए
अस्ली सुकूँ तो अपना ही घर होता है
ये लूट लेती हैं फ़क़त मुस्कान से
इन लड़कियों के पास मन्तर होता है
जो फ़ेल होते थे सदा ही क्लास में
उन जैसों के अन्दर ही शायर होता है
As you were reading Shayari by Harsh Kumar Bhatnagar
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