क़ैद-ए-कफ़स से शोर-ए-नफ़स को रिहा करो

  - Harsh Kumar Bhatnagar

क़ैद-ए-कफ़स से शोर-ए-नफ़स को रिहा करो
दुनिया को छोड़ दिल में जो आए किया करो

तहज़ीब से रखो ये गुलों को दरीचों में
ये तितलियों को आने दो खिड़की को वा करो

गर आसमाँ में तुम को फ़राग़त है देखनी
पिंजरे को खोल और परिंदा रिहा करो

रक़्क़ासा की नज़र में सभी एक जैसे हैं
हर ख़ुश-नुमा की बात न दिल पे लिया करो

ये मुफ़लिसी ही अस्ल में जीना सिखाती है
टूटा मकाँ है तो उसे भी घर कहा करो

ये वक़्त रातों रात बदल सकता है सो तुम
शिद्दत से ख़्वाब देखो जतन दस गुना करो

हर शख़्स चाहता है मोहब्बत मिले उसे
जो तुम को चाहता है सो तुम भी किया करो

ये तालियों के शोर में है नफ़रतों की गूँज
ख़्वाहिश सुकून की है तो ग़ज़लें पढ़ा करो

अंदाज़ मत ये बदलो ज़माने के वास्ते
ऐ हर्ष वसवसों में भी नग़मे सुना करो

  - Harsh Kumar Bhatnagar

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