अब 'मीर'-जी तो अच्छे ज़िंदीक़ ही बन बैठे
पेशानी पे दे क़श्क़ा ज़ुन्नार पहन बैठे
आज़ुर्दा दिल-ए-उलफ़त हम चुपके ही बेहतर हैं
सब रो उठेगी मज्लिस जो कर के सुख़न बैठे
उर्यान फिरें कब तक ऐ काश कहीं आ कर
ता गर्द बयाबाँ की बाला-ए-बदन बैठे
पैकान-ए-ख़दंग उस का यूँ सीने के ऊधर है
जों मार-ए-सियह कोई काढ़े हुए फन बैठे
जुज़ ख़त के ख़याल उस के कुछ काम नहीं हम को
सब्ज़ी पिए हम अक्सर रहते हैं मगन बैठे
शमशीर-ए-सितम उस की अब गो का चले हर-दम
शोरीदा-सर अपने से हम बाँध कफ़न बैठे
बस हो तो इधर-ऊधर यूँ फिरने न दें तुझ को
नाचार तिरे हम ये देखें हैं चलन बैठे
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