आँखों में कुछ दर्द है और नींद भी आती नहीं

  - nakul kumar

आँखों में कुछ दर्द है और नींद भी आती नहीं
कोशिशें करता हूँ पर ये ज़िंदगी भाती नहीं

एक ही शिकवा है अपनी नौजवानी से हमें
ख़्वाब तो खाती है वो हमको मगर खाती नहीं

हम चले जाऍंगे एक दिन छोड़ के तुझको कहीं
ऐ ग़म-ए-दीवानगी तू क्यों कहीं जाती नहीं

यूँ जिए जाते हैं जैसे बोतलों में तितलियाँ
ज़िन्दगी अपनी कभी अपनी तरफ़ आती नहीं

घाव की गहराई का भी अब कोई मतलब नहीं
दर्द की आहें भी अब हमसे भरी जाती नहीं

अंदर-ओ-अंदर ही रह जाती हैं घुटकर के कहीं
दिल की बातें दिल से बाहर अब कहीं जाती नहीं

सोचकर ये मन की मन में मार देते हैं सभी
ख़ास बातें हर किसी से तो कही जाती नहीं

ग़म की चादर ओढ़ के सोते रहे जो उम्र भर
ज़िंदगी उनको कभी पोशाक पहनाती नहीं

रात ये अपनी अभी कुछ इस क़दर लाचार है
घर में हैं दीये बहुत पर एक भी बाती नहीं

कुछ समय माँगो अगर घंटों तको फिर रास्ते
सबसे अच्छी मौत है आती है टहलाती नहीं

रोज ही डसती है ये इक बार क्या सौ बार क्या
क्यों मगर ये ज़िंदगी नागिन कही जाती नहीं

  - nakul kumar

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