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शब को था वो किसी की बाँहों में - Nusrat Zehra

शब को था वो किसी की बाँहों में
आग जलती रही निगाहों में

खुल के बरसा नहीं कभी सावन
एक बादल है इन निगाहों में

तेरे कूचे में वो नहीं आया
बर्फ़ सी जम गई थी राहों में

कश्तियाँ जल गई हैं सब शायद
इक धुआँ है किसी की आहों में

कब तुझे भूल पाई पल भर को
ये भी शामिल मिरे गुनाहों में

- Nusrat Zehra

Nigaah Shayari

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