हमने अब तक जो पल नहीं पाए
वो तेरे ग़म में जल नहीं पाए
ये समंदर नदी-वदी क्या हैं
अश्क हैं ! जो निकल नहीं पाए
तुझसे ये भी सवाल होगा, हम
तेरे होते संभल नहीं पाए
कैसे- कैसे उठे दुआ को हाथ
हादिसे फिर भी टल नहीं पाए
हाय अफ़सोस उस गली में लोग
अपनी पलकों से चल नहीं पाए
इतनी तेज़ी से रेल धुंधलाई
हाथ क्या आंख मल नहीं पाए
बादलों मेलजोल ख़त्म करो
आज तारे निकल नहीं पाए
नाम शादाब रख लिया तो क्या
ग़म के सूरज तो ढल नहीं पाए
As you were reading Shayari by Shadab Javed
our suggestion based on Shadab Javed
As you were reading undefined Shayari