हमने अब तक जो पल नहीं पाए - Shadab Javed

हमने अब तक जो पल नहीं पाए
वो तेरे ग़म में जल नहीं पाए

ये समंदर नदी-वदी क्या हैं
अश्क हैं ! जो निकल नहीं पाए

तुझसे ये भी सवाल होगा, हम
तेरे होते संभल नहीं पाए

कैसे- कैसे उठे दुआ को हाथ
हादिसे फिर भी टल नहीं पाए

हाय अफ़सोस उस गली में लोग
अपनी पलकों से चल नहीं पाए

इतनी तेज़ी से रेल धुंधलाई
हाथ क्या आंख मल नहीं पाए

बादलों मेलजोल ख़त्म करो
आज तारे निकल नहीं पाए

नाम शादाब रख लिया तो क्या
ग़म के सूरज तो ढल नहीं पाए

- Shadab Javed
2 Likes

More by Shadab Javed

As you were reading Shayari by Shadab Javed

Similar Writers

our suggestion based on Shadab Javed

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari