इक हसीं को दिल दे कर क्या बताएँ क्या पाया
लज़्ज़त-ए-फ़ना चक्खी ज़ीस्त का मज़ा पाया
मंज़िलों की सख़्ती का ग़म नहीं ख़ुशी ये है
किस हुजूम-ए-हसरत में हम ने रास्ता पाया
क़द्र उस की पहचानें आप या न पहचानें
अपने दिल को हम ने तो हस्ब-ए-मुद्दआ पाया
बे-ख़ुदी की हसरत क्या बे-सबब मैं करता था
आ के होश में समझा बे-ख़ुदी में क्या पाया
शैख़ ये तही साग़र हाँ इसी को साक़ी ने
मेरे काम का पाया या तेरे काम का पाया
हसरतें सरासीमा हर तरफ़ नज़र आईं
कारवान-ए-दिल मैं ने फिर लुटा हुआ पाया
मेरी मस्तियाँ समझें तेरी शोख़ियाँ जानें
तू ने क्या लिया मुझ से मैं ने तुझ से क्या पाया
सब ये रंग-आमेज़ी है फ़क़त तख़य्युल की
क्या बताऊँ क्या खोया क्या जताऊँ क्या पाया
पास बैठ कर मेरे देखते नहीं मुझ को
उन की शर्म को मैं ने सब्र-आज़मा पाया
सई-ए-पैहम ऐ 'मंज़ूर' इस क़द्र नशात-अफ़्ज़ा
ना-उमीद किस से थे किस से ये सिला पाया
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