Ali Manzoor Hyderabadi

Ali Manzoor Hyderabadi

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Ali Manzoor Hyderabadi shayari collection includes sher, ghazal and nazm available in Hindi and English. Dive in Ali Manzoor Hyderabadi's shayari and don't forget to save your favorite ones.

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ग़म का गुमाँ यक़ीन-ए-तरब से बदल गया
एहसास-ए-इश्क़ हुस्न के साँचे में ढल गया

साथ उन के ले रहा हूँ मैं गुल-गश्त के मज़े
ये ख़्वाब ही सही मिरा जी तो बहल गया

मजबूर-ए-इश्क़ चश्म-ए-फ़ुसूँ-साज़ से हूँ मैं
जादू मुझी पे दोस्त का चलना था चल गया

मैं इंतिज़ार-ए-ईद में था ईद आ गई
अरमान-ए-दीद दामन-ए-इशरत में पल गया

है बर्क़-ए-जल्वा याद मगर ये नहीं है याद
ख़िरमन मिरे ग़ुरूर का किस वक़्त जल गया

पैमान-ए-इश्क़-ओ-हुस्न की तज्दीद के सिवा
जो भी ख़याल ज़ेहन में आया निकल गया

बढ़ते चले हैं आए दिन अस्बाब-ए-इज़्तिराब
यादश-ब-ख़ैर आज का वा'दा भी टल गया

'मंज़ूर' किस ज़बाँ से बुतों को बुरा कहें
ईमाँ हमारा कुफ़्र के दामन में पल गया
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Ali Manzoor Hyderabadi
राज़-ए-चश्म-ए-मय-गूँ है कैफ़-ए-मुद्दआ' मेरा
ग़ैर की नज़र से है दूर मै-कदा मेरा

वास्ते की ख़ूबी ने सहल मंज़िलें कर दीं
हुस्न इश्क़ का रहबर इश्क़ रहनुमा मेरा

कर दिया मुझे बे-ख़ुद उन की बे-नियाज़ी ने
कह रहा हूँ ख़ुद उन से दिल सँभालना मेरा

हाए ख़ौफ़-ए-बदनामी वाए फ़िक्र-ए-नाकामी
बेवफ़ा के हाथों में हासिल-ए-वफ़ा मेरा

लुत्फ़-ए-ख़ल्वत-ओ-जल्वत हम न पा सके लेकिन
धूम हर तरफ़ उन की ज़िक्र जा-ब-जा मेरा

तर्ज़-ए-वालिहाना की दाद कब मिली मुझ को
नाज़-ए-दोस्त कब निकला सूरत-आश्ना मेरा

सोचने लगेगी कुछ तेरी ख़ुश-निगाही भी
राएगाँ न जाएगा यूँ ही देखना मेरा

मैं ने जब कभी देखा सर झुका लिया तू ने
तू ने जब कभी देखा दिल तड़प गया मेरा

इशरत-ए-हिजाब अज़-ख़ुद चारासाज़-ए-दिल क्या हो
साज़ हो जब ऐ ज़ालिम सोज़-आश्ना मेरा

मेरी ख़स्ता-हाली ने सई-ए-ख़ुद-शनासी की
उन की ख़ुद-नुमाई ने जब किया गिला मेरा

है जो हज़रत-ए-'मंज़ूर' ए'तिबार-ए-ईं-ओ-आँ
इज़्न-ए-बे-ख़ुदी ले कर पूछिए पता मेरा
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Ali Manzoor Hyderabadi
फ़र्क़ जब लज़्ज़त-ए-एहसास में पाया न गया
दर्द देखा न गया तुम को दिखाया न गया

चुटकियाँ कौन ये रह रह के लिए जाता है
मेरे दिल में तो मिरी जाँ कोई आया न गया

लुत्फ़ यूँ रंजिश-ए-बे-जा के लिए पहरों तक
बे-सबब रूठने वाले को मनाया न गया

ख़्वाब-ए-पुर-कैफ़ का मंज़र भी नशात-आवर था
दोस्त को इस लिए कुछ देर जगाया न गया

मनअ' करती जो रही ख़ंदा-जबीनी उस की
दर्द-ए-दिल अपना कभी उस को सुनाया न गया

ख़ुद हँसा वो ये जवानी की करम-बख़्शी है
ख़ुसरव-ए-हुस्न को मुझ से तो हँसाया न गया

दे तो दी ज़ब्त-ए-मोहब्बत की क़सम ज़ालिम ने
फ़ाएदा ज़ब्त-ए-मोहब्बत का बताया न गया

कब दिखाता है वो बर्बादी-ए-हसरत का समाँ
ख़ाक में जब मिरी हसरत को मिलाया न गया

रौशनी जिस की दिखाती थी मुझे भूल ही भूल
उस क़मर-वश का वो अंदाज़ भुलाया न गया

तूर की पूरी तरह याद दिलाई न गई
होश छीने तो गए होश में लाया न गया

उन की मश्कूक नज़र में वो मज़ा था मंज़ूर
कि यक़ीं अपनी मोहब्बत का दिलाया न गया
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Ali Manzoor Hyderabadi
इक हसीं को दिल दे कर क्या बताएँ क्या पाया
लज़्ज़त-ए-फ़ना चक्खी ज़ीस्त का मज़ा पाया

मंज़िलों की सख़्ती का ग़म नहीं ख़ुशी ये है
किस हुजूम-ए-हसरत में हम ने रास्ता पाया

क़द्र उस की पहचानें आप या न पहचानें
अपने दिल को हम ने तो हस्ब-ए-मुद्दआ पाया

बे-ख़ुदी की हसरत क्या बे-सबब मैं करता था
आ के होश में समझा बे-ख़ुदी में क्या पाया

शैख़ ये तही साग़र हाँ इसी को साक़ी ने
मेरे काम का पाया या तेरे काम का पाया

हसरतें सरासीमा हर तरफ़ नज़र आईं
कारवान-ए-दिल मैं ने फिर लुटा हुआ पाया

मेरी मस्तियाँ समझें तेरी शोख़ियाँ जानें
तू ने क्या लिया मुझ से मैं ने तुझ से क्या पाया

सब ये रंग-आमेज़ी है फ़क़त तख़य्युल की
क्या बताऊँ क्या खोया क्या जताऊँ क्या पाया

पास बैठ कर मेरे देखते नहीं मुझ को
उन की शर्म को मैं ने सब्र-आज़मा पाया

सई-ए-पैहम ऐ 'मंज़ूर' इस क़द्र नशात-अफ़्ज़ा
ना-उमीद किस से थे किस से ये सिला पाया
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Ali Manzoor Hyderabadi
हुस्न को समझता है इश्क़ हम-ज़बाँ अपना
है हक़ीक़त ऐसी ही या है ये गुमाँ अपना

फ़ाश हम करें क्यूँकर राज़-ए-मुद्दआ'-याबी
गुम हुसूल-ए-मक़्सद में हासिल-ए-बयाँ अपना

कारसाज़ है कितनी दीद-ओ-बाज़-दीद अपनी
मिल गया सिला हम को बा'द-ए-इम्तिहाँ अपना

लुत्फ़-ए-रंजिश-ए-बेजा आज दोनों पाते हैं
मुस्कुरा रहे हैं वो दिल है शादमाँ अपना

उन की दिल-फ़रेबी का ये जवाब है वर्ना
मुझ सा बद-गुमाँ समझे उन को मेहरबाँ अपना

कारवाँ के भी मिलते कुछ निशाँ ये ना-मुम्किन
कुछ असर तो छोड़ेगी याद-ए-कारवाँ अपना

दर्द-आश्ना दिल को देख कर मैं कहता हूँ
यास दे नहीं सकती आस को मकाँ अपना

बेकसी की मंज़िल से जिस की हद नहीं मिलती
इस ज़मीं पे खींचें हम किस तरह निशाँ अपना

क्या इलाज है 'मंज़ूर' इस जुनूँ-ख़िरामी का
मुन्फ़इल हूँ मजनूँ को कह के हम-इनाँ अपना
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Ali Manzoor Hyderabadi
लाएगी रंग आप की ये दिल-लगी कुछ और
बढ़ कर रहेगी अब मिरी आशुफ़्तगी कुछ और

मुझ पर खुलेंगे और अभी राज़-हा-ए-इश्क़
दिल को मिलेगी लज़्ज़त-ए-बेचारगी कुछ और

मेरी हयात इश्क़ है तम्हीद-ए-इम्बिसात
जल्वे दिखाएगी मुझे ख़ुद-रफ़्तगी कुछ और

उन की तरफ़ है चश्म-ए-सुख़न गो दम-ए-अख़ीर
उस के सिवा नहीं असर-ए-ज़िंदगी कुछ और

हाँ ऐ ख़याल-ए-दोस्त दिखा दोस्त को दिखा
बाक़ी कुछ और है हवस-ए-बंदगी कुछ और

रहता न इतना दूर मैं उस जल्वा-गाह से
ऐ काश उभारता ग़म-ए-उफ़्तादगी कुछ और

वा'दे यूँही जो करते रहेंगे वो नौ-ब-नौ
हासिल करूँगा मैं तरब-ए-ज़िंदगी कुछ और

'मंज़ूर' इक निगाह-ए-तरब-सोज़ के सिवा
देखा न हम ने हासिल-ए-शर्मिंदगी कुछ और
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Ali Manzoor Hyderabadi
हुस्न उन का अपने ज़ौक़-ए-दीद में पाता हूँ मैं
सामने हो कर वो छुपते हैं तड़प जाता हूँ मैं

इशरत-ए-जल्वा भी हो जाए जहाँ हैरत-ज़दा
ऐ ख़याल-ए-दोस्त उस मंज़िल पे घबराता हूँ मैं

देखता हूँ अपने ग़म-ख़्वारों की जब बे-दर्दियाँ
हुस्न-ए-बेपर्दा की रह रह कर क़सम खाता हूँ मैं

इंतिज़ार उस का है कितना जाँ-गुसिल क्यूँकर कहूँ
ख़त में जिस का नाम ही लिख कर तड़प जाता हूँ मैं

कब सँभलने देगी ग़श से उन की चश्म-ए-बर्क़-पाश
मुज़्दा बादा-ए-बे-ख़ुदी आते हैं वो जाता हूँ मैं

बे-ख़याली में कभी अपनी ज़बान-ए-हाल से
ख़स्ता-हाली के मज़े उन को भी समझाता हूँ मैं

आह अब तक की नहीं सैर-ए-बहारिस्तान-ए-दिल
इक ख़याली रौ में ऐ हमदम बहा जाता हूँ मैं

हैरत-अफ़्ज़ा है मिरा इश्क़-ए-मोहब्बत-आफ़रीं
ख़ुद ही अब मुज़्तर नहीं उन को भी तड़पाता हूँ मैं

रास्ता छोड़ ऐ तग़ाफ़ुल मेरे घर आते हैं वो
रहबरी कर ऐ तमन्ना उन के घर जाता हूँ मैं

हैरत-ए-मश्क़-ए-तसव्वुर खो न दे मुझ को कहीं
सामने अपने तुझे ऐ दिल-नशीं पाता हूँ मैं

ला रही है उन की चश्म-ए-लुत्फ़ इशरत के पयाम
देख ऐ 'मंज़ूर' अब कैसा नज़र आता हूँ मैं
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Ali Manzoor Hyderabadi
पूछो न कुछ सुबूत-ए-ख़िरद मैं ने क्या दिया
एक मस्त-ए-नाज़ को दिल-ए-बे-मुद्दआ दिया

अब क्या गिला करूँ अदम-ए-इल्तिफ़ात का
मेरी निगाह-ए-यास ने सब कुछ जता दिया

बढ़ते हुए शुऊ'र में गुम हो रहा हूँ मैं
एहसास-ए-हुस्न आप ने इतना बढ़ा दिया

देखी न जब तजल्ली-ए-तकरार-आश्ना
बे-रंगियों का रंग ख़ुदी ने जमा दिया

है शाद बे-दिली पे तही-दस्त-ए-आरज़ू
अच्छा किया निशान-ए-तमन्ना मिटा दिया

मायूस-ए-जल्वा-हा-ए-तरब हूँ ख़बर नहीं
दिल ख़ुद ही बुझ गया कि किसी ने बुझा दिया

क्या लुत्फ़-ए-इज़्तिराब दिखाऊँ कि आप ने
एहसास-ए-दर्द दर्द से पहले मिटा दिया

अंजाम-ए-दीद-ओ-ईद अब ऐ हम-नशीं न पूछ
वो मुझ को याद है मुझे जिस ने भुला दिया

मा'लूम था तुझे कि वो दर्द-आश्ना नहीं
'मंज़ूर' दिल का दर्द उन्हें भी सुना दिया
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Ali Manzoor Hyderabadi
इश्क़-ए-सादिक़ जो असीर-ए-तमा-ए-ख़ाम न था
सई-ए-नाकाम के ग़म से मुझे कुछ काम न था

तूर के लुत्फ़-ए-ख़ुसूसी की क़सम पहले भी
मेरे दिल पर असर-ए-जल्वा-गह-ए-आम न था

दोस्त के हुस्न-ए-तवज्जोह से नहीं शादाब तक
निगह-ए-ग़म-ज़दा में क्या कोई पैग़ाम न था

हसरत-ए-ख़ूँ-शुदा हर आन नई शान में थी
रंग जो सुब्ह को देखा वो सर-ए-शाम न था

दिल-लगी हम से किए जाते हैं क्यूँ ऐश पसंद
क्या यहाँ सोख़्ता कामों का कोई काम न था

जानता था जिसे अपनी उसी महफ़िल में गया
जा के ग़ैरों की तरह मुंतज़िर-ए-जाम न था

मय-गुसारी के लिए मिल गए हम-ज़ौक़ बहुत
ग़म-गुसारी के लिए कोई भी हम-काम न था

इस ज़माने में भी इल्हाम है 'मंज़ूर' का शे'र
मैं किसी दौर में हसरत-कश-ए-इल्हाम न था
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Ali Manzoor Hyderabadi
गुम उन्हीं मैं हूँ उन का ध्यान कब नहीं आता
याद उन्हें भुलाने का कोई ढब नहीं आता

ज़ब्त-ए-गिर्या की तलक़ीं ख़त्म कर बस ऐ हमदम
बात बात पर रोना बे-सबब नहीं आता

किस पे जान देता हूँ राज़ ही में रहने दे
नाम उस दिल-आरा का ता-ब-लब नहीं आता

क्या कहूँ उसे पहले देखता था किस ढब से
जो हसीं नज़र मुझ को आह अब नहीं आता

जितने बादा-ख़्वार आए तालिब-ए-नशात आए
साक़िया कोई मुझ सा हक़ तलब नहीं आता

इतने ग़मगुसारों से शाद क्या हो वो ग़मगीं
ग़म भी जिस के हिस्से में सब का सब नहीं आता

तेरी कम-निगाही का तलब खींच लाता है
सामने तिरे मैं ख़ुद बे-सबब नहीं आता

रश्क-ए-ग़ैर ऐ 'मंज़ूर' ऐसे वक़्त आता है
दोस्त के तसव्वुर में दोस्त जब नहीं आता
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