अगरचे शो'ला अयाँ नहीं है अगरचे लब पर धुआँ नहीं है
निहाँ जिसे हम समझ रहे हैं वो आग दिल की निहाँ नहीं है
ये राह वो है कि हर मुसाफ़िर के तजरबे जिस में मुख़्तलिफ़ हैं
वो कौन इंसाँ है ज़िंदगी जिस की इक नई दास्ताँ नहीं है
किधर को जाएँ किसे पुकारें मुड़ें कि आगे ही बढ़ते जाएँ
ग़ुबार का भी तिरे सहारा हमें तो ऐ कारवाँ नहीं है
ज़रा ये सहरा को जाने वालों से कोई पूछे कहाँ चले तुम
कहीं है कोई ज़मीन ऐसी जहाँ पे ये आसमाँ नहीं है
वो मेहरबाँ हो तो वसवसा ये कि मेहरबानी ये दफ़अ'तन क्यों
वो सरगिराँ है तो है ये हसरत कि हाए वो मेहरबाँ नहीं है
ये दिल की पैहम सी बे-क़रारी नज़र की हरकात-ए-इज़्तिरारी
और उस पे इसरार-ए-पर्दा-दारी कि जैसे वो राज़-दाँ नहीं है
वही हिकायत दिल-ओ-नज़र की वही कहानी है चश्म-ए-तर की
'रज़ा' ये मेरी ग़ज़ल-सराई नई कोई दास्ताँ नहीं है
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