हुआ कितना आसान अब हर सफ़र है
पड़ी जब से मुर्शद की मुझ पर नज़र है
मिला है उसे हर सुकूॅं इस जहाँ में
रज़ा में रहा इनकी जो भी बशर है
है जिस पर हुई इनकी रहमत की बर्षा
ज़माने से उसको न फिर कोई डर है
समय रहते जो पा ले जीवन का मतलब
न उनका रहा यह अधर में सफ़र है
यहाँ पर पड़े इनके कोमल चरण हैं
बना फिर वह तीरथ ही सारा नगर है
है अरमाॅं दिलों के सुनो मेरे दिलबर
कि हर बात मानूॅं तेरी हर पहर है
Read Full